11 दिसंबर 2009, रायबरेली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने दो दिवसीय रायबरेली दौरे के दरम्यान स्कूलों में चलने वाले मिडडे मील योजना का जायजा लिया।
वे दोपहर के भोजन स्कीम का हाल देखकर दंग रह गई। जिस योजना के लिए केंद्र सरकार हर साल करोड़ो रुपये मुहैया करवाती है उसका जमीनी स्तर पर क्या इस्तेमाल हो रहा है-ये देखकर कांग्रेस अध्यक्ष ताज्जुब में पड़ गई। जब उन्होने रायबरेली के कई गांवों में स्कूलों का दौरा किया तो कई स्कूलों में खाना तक नहीं बना था। जिन स्कूलों में खाना बना भी था, वहां मात्रा इतनी कम थी कि वो सारे बच्चों के लिए नाकाफी था। कांग्रेस अध्यक्ष ने जब इसका कारण पूछा तो कोई भी अफसर इसका जवाब नहीं दे सका।
कांग्रेस अध्यक्ष कई स्कूलों के किचन तक गईं। वे अचानक सरेनी ब्लॉक के बरवलिया प्राथमिक विद्यालय पहुंची। उन्होने जब अफसरों से भोजन की मात्रा को लेकर सवाल किए तो वे गुणवत्ता का हवाला देने लगे। कांग्रेस अध्यक्ष ने जब पूछा कि इतने खाना से ढ़ेर सारे बच्चों का पेट कैसे भरेगा-तो बीडीओ का जवाब था वे जल्द ही ज्यादा भोजन बनवाने का प्रयास करेंगे। सोनिया गांधी जहां भी गई सरकारी योजनाओं का यहीं हाल था। वे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना( मनरेगा) से भी संतुष्ट नजर नहीं आईं। वे जहां भी गईं, उन्हे ढ़ेरों शिकायतें सुनने को मिली। मस्टर रोल में गड़बड़ी, फर्जी जॉब कार्ड और फर्जी काम करवाने के आरोप ग्राम प्रधानों पर लगे।
लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष को ये अंदाज तो हो ही गया कि जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है। दूसरी तरफ नरेगा योजना में व्याप्त गड़बड़ी इस बात की चुगली कर रही थी कि यूपी सरकार को इस बात से कोई मतलब नहीं रह गया है कि गरीबों के लिए बनाई गई योजना का क्या हाल है। लेकिन रायबरेली में तो वहां की सांसद नरेगा या दोपहर के भोजन का हाल भी लेने आती है, सवाल ये है कि क्या क्या देशभर के सांसद भी ऐसा करते हैं ?