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महिलाओं की भी आवाज सुनी जाए-सोनिया

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन पर अब तक चली बहस में महिलाओं की आवाज को सुना नहीं गया है और उनकी चिंताओं पर वैश्विक जलवायु समझौता वार्ताओं में शायद ही कभी चर्चा की जाती है। उन्होंने कहा कि न केवल विभिन्न देशों के बीच, बल्कि महिला और पुरुषों के बीच भी ‘जलवायु न्याय’ की जरूरत है।

सोनिया गाँधी ने कहा कि 21वीं सदी में मानव के समक्ष पेश सभी चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान से ज्यादा चिंतनीय कुछ ही समस्याएँ हैं। दुर्भाग्यवश अब तक हुई वैश्विक चर्चाओं में महिलाओं की आवाज को सुना ही नहीं गया है और पर्यावरण जागरूकता फैलाने में महिलाओं की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है।

सोनिया ने कल रात रॉयल कामनवेल्थ सोसाइटी में ‘राष्ट्रमंडल व्याख्यान-2011’ के तहत ‘वूमेन ऐज एजेंट्स फॉर चेंज’ विषय पर अपने भाषण में कहा कि हमें जलवायु न्याय न केवल विभिन्न देशों के बीच चाहिए, बल्कि यह लिंगों के बीच भी होना चाहिए।

कांग्रेस अध्यक्ष ने राष्ट्रमंडल को यह बात याद दिलाई कि महिलाओं में निवेश करना सर्वाधिक लाभ का सौदा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर शहरीकरण विश्व का भविष्य है तो हमें शहरी वातावरण और सेवाओं को इस तरह तैयार करना चाहिए कि महिलाओं को तेजी से होते शहरीकरण में अधिक सुरक्षा मिल सके। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गाँधी पाँच दिवसीय निजी दौरे पर लंदनClick here to see more news from this city में हैं। वे जब खचाखच भरे सभागार में बोलने के लिए मंच की ओर बढ़ी लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया।

सोनिया के व्याख्यान के दौरान सभागार में उच्चायुक्तों के अलावा राजदूत एवं ब्रिटिश सांसद भी मौजूद थे। सोनिया गाँधी ने कहा कि कभी-कभी वे इस बात पर विचार करती हैं कि क्या महिलाओं की प्रकृति के प्रति अधिक सहानुभूति और अपने बच्चों के भविष्य के प्रति चिंता दुनिया को एक नए, अधिक टिकाऊ और कम उपभोक्तावादी रास्ते को ढूँढ़ने में मददगार साबित हो सकती है।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर राष्ट्रमंडल ऐसा पहला अंतरराष्ट्रीय संगठन था, जिसने वर्ष 1989 में इस बाबत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रकाशित किया था।

सोनिया गाँधी ने कहा कि इससे पूर्व, वर्ष 2007 में विभिन्न राष्ट्रमंडल सरकारों के प्रमुखों ने जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना पर सहमति जताई थी। इसमें अन्य बातों के अलावा प्रभावी कार्रवाई के लिए महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की भी बात कही गई थी। सोनिया ने पूछा कि ऐसे हालात में महिलाओं की भागीदारी को कैसे बढ़ाया जा सकता है, जब वैश्विक जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समझौता वार्ताओं या राष्ट्रीय एवं स्थानीय जलवायु प्रबंधन योजनाओं में महिलाओं की संख्या काफी कम है।
उन्होंने कहा कि अब समय है जब विश्व को इस खाई को पाटने की दिशा में नई पहल करनी चाहिए। इस तरह की पहल के तहत इस मामले में होने वाली वैश्विक वार्ताओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उपाय सुझाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें जलवायु संबंधी न्याय सिर्फ देशों के लिए ही नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी चाहिए।

कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए महिलाओं की भूमिका बढ़ाए जाने की जरूरत है। अपने व्याख्यान में सोनिया गाँधी ने भारत में उन पाँच क्षेत्रों को रेखांकित किया जिसमें महिलाएँ ग्रणी भूमिका निभा रही हैं। इसमें स्वयं सहायता समूह के माध्यम से बचत के अलावा स्थानीय परियोजनाओं के लिए ऋण उपलब्धता, ग्रामीण स्वशासन में महिलाओं के लिए भूमिकाएँ, महिलाओं से जुड़े मानवाधिकार की स्थापना के तहत सामाजिक सक्रियता, स्थानीय सामुदायिक उद्यम की स्थापना और ग्रामीण सूचना केन्द्र एवं सूचना प्रौद्योगिकी केन्द्रों का गठन शामिल है। इनमें से कुछ को एशिया के अन्य हिस्सों में भी दोहराया गया है।

उन्होंने कहा कि भारत में हिंसा एवं संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में भी उद्यमी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महिलाओं के समूहों की मध्यस्थता, शांति बहाली और सुलह-सफाई जैसे मामलों में भी महती भूमिका रही है।

आज भारत में व्यक्तिगत एवं सामूहिक तौर पर महिलाएँ, अपनी ऊर्जा और उद्यमशीलता के बल पर बदलाव की बयार लाने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। व्यापक सामाजिक परिपेक्ष में ये अपनी स्थितियों में भी बदलाव ला रही हैं।